बेरोजगारी पर निबंध – Bharat me berojgari par Essay in hindi

Last updated on November 9th, 2023 at 02:44 pm

दोस्तों अगर आप Bharat me berojgari par essay in hindi पढ़ना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को लास्ट तक जरूर पढ़िए।

आइए आपको बताते हैं Bharat me berojgari par essay in hindi के बारे में

Bharat me berojgari par essay in hindi

मनुष्य की सारी गरिमा, जीवन का उत्साह, आत्मविश्वास व आत्मसम्मान उसकी आजीविका पर निर्भर करता है। बेकार या बेरोजगार व्यक्ति से बढ़कर दैनिक दुर्बल तथा प्रभावशाली कौन होगा?

परिवार के लिए वह बोझ होता है तथा समाज के लिए कलंक।

उसके समस्त गुण अवगुण कहलाते हैं। और उसके सामान्य भूले अपराध घोषित की जाती है। इस प्रकार वर्तमान समय में भारत के सामने सबसे विकराल

और विस्फोटक समस्या बेकारी की है। क्योंकि पेट की ज्वाला से पीड़ित व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है। बुभुक्षित: किं न करोति पापम।

हमारा देश ऐसे भूख की पीड़ा से संतप्त है।

प्राचीन भारत की स्थिति

प्राचीन भारत अनेक राज्यों में विभाजित था। राजा गण स्वेच्छाचारी ना थे। वे मंत्री परिषद के परामर्श से कार्य करते हुए प्रजा के सुख समृद्धि के लिए निरंतर लगे रहते थे। राज दरबारों से हजारों लोगों की आजीविका चलती थी,

अनेक उद्योग धंधे फलते फूलते थे प्राचीन भारत में यद्यपि बड़े-बड़े नगर भी थे पर प्रधानता ग्रामों की ही थी।

गांव में कृषि योग्य भूमि का अभाव न था।

सिंचाई की समुचित व्यवस्था थी और भूमि सच्चे अर्थों में अनाज से भरपूर थी इन ग्रामों में कृषि से संबंध अनेक हस्तलिपि काम करते थे, जैसे बढ़ई, लोहार,

सिकलीगर, साथ ही प्रत्येक घर में कोई ना कोई लघु उद्योग चलता था,

जैसे सूट कातना, कपड़ा बुनना, इत्र- तेल का उत्पादन करना ,खिलौने बनाना ,कागज बनाना, चित्रकारी करना, रंगाई का काम करना, गुड़ बनाना आदि।

भारत का निर्यात व्यापार

उस समय भारत का निर्यात व्यापार बहुत बढ़ा-चढ़ा था। ‌यहां से अधिकतर रेशम मलमल आदि भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्र और मणि, मोती, हीरे मसाले मोर

पंख हाथी दांत आदि बड़ी मात्रा में विदेशों में भेजे जाते थे दक्षिण भारत गर्म मसालों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था

यहां कांच का काम भी बहुत उत्तम होता था हाथी दांत और शंख की सुंदर चूड़ियां बनती थी जिन पर बारीक कारीगरी होती थी।

ऑपरेट विवरण से स्पष्ट है कि प्राचीन काल की असाधारण समृद्धि का मुख्य आधार कृषि ही नहीं अपितु अगणित लघु उद्योग धंधे एवं निर्यात व्यापार था

इन उद्योग धंधों का संचालन बड़े बड़े पूंजीपतियों के हाथों में ना रह कर गण संस्थाओं ( व्यापार संघों) द्वारा होता था।

यही कारण था कि प्राचीन भारत में बेकारी का नाम भी कोई नहीं जानता था।

प्राचीन भारत के इस आर्थिक सर्वेक्षण से तीन निष्कर्ष निकलते हैं- (1) देश के अधिकांश जनता किसी ना किसी उद्योग धंधे, हस्तशिल्प व वाणिज्य व्यवसाय मे लगी थी। ‌

(2) संपूर्ण देश में एक प्रकार का आर्थिक साम्यवाद विद्यमान था अर्थात धन कुछ ही हाथों‌ में केंद्रित ना होकर न्यू‌नाधिक मात्रा में संपूर्ण देश में फैला हुआ था।‌

( 3) भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं का जाल बिछा था।‌

Bharat me berojgari par essay in hindi

वर्तमान स्थिति‌

जब सन 1947 ई° में देश लंबी पराधीनता के बाद स्वतंत्र हुआ तो

आशा हुई कि प्राचीन भारतीय अर्थ तंत्र की सुंदरता की आधारभूत ग्राम पंचायतों एवं लघु उद्योगों को जीवित कर देश को पुनः समृद्धि की ओर बढ़ाने हेतु योग्यता दिशा मिलेगी।

पर दुर्भाग्यवश देश का शासन तंत्र अंग्रेजों के मानस पुत्रों के हाथों में चला गया, जो अंग्रेजों से भी ज्यादा अंग्रेजियत में रंगे हुए थे।

परिणाम यह हुआ कि देश में बेरोजगारी बढ़ती ही गई।

इस समय भारत की जनसंख्या 139 करोड़ के ऊपर है।

जिसमें 10% अर्थात 13.9 करोड़ से भी अधिक लोग पूर्णतया बेरोजगार हैं।

बेरोजगारी से अभिप्राय- बेरोजगार, सामान्य अर्थ में उस व्यक्ति को कहते हैं,

जो शारीरिक रूप से कार्य करने के लिए असमर्थ ना हो तथा कार्य करने का इच्छुक होने पर भी उसे प्रचलित मजदूरी की दर पर कोई कार्य ना मिलता हो।

बेकारी को हम तीन वर्गों में बांट सकते हैं- अनैच्छिक बेकारी, गुप्त व आंशिक बेकारी तथा संघर्षात्मक बेकारी। अनैच्छिक बेरोजगारी से अभिप्राय यह है

कि व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने को तैयार है परंतु उसे रोजगार नहीं मिलता।

गुप्त वह आंशिक बेरोजगारी अभिप्राय है किसी भी व्यवसाय में आवश्यकता से अधिक व्यक्तियों के कार्य पर लगने से है।

संघर्षात्मक बेरोजगारी से आशय यह है कि बेरोजगारी श्रम की मांग में

सामयिक परिवर्तनों के कारण होती है। और अधिक समय तक नहीं रहती।

साधारणतया किसी भी अधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र में तीनों प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है।

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भारत में बेरोजगारी का स्वरूप‌

जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत का स्थान विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में चीन के पश्चात है। यद्यपि वहां पर बेरोजगारी पाई जाती है,

तथापि भारत में बेरोजगारी का स्वरूप अन्य देशों की अपेक्षा कुछ भिन्न है।

यहां पर संघर्षात्मक बेरोजगारी भीषण रूप से फैली हुई है।

प्राया नगरों में अनैच्छिक बेरोजगारी और गांव में गुप्त बेरोजगारी का स्वरूप देखने में आता है

शहरों में बेरोजगारी के दो रूप देखने में आते हैं-

औद्योगिक ‌ श्रमिकों की बेरोजगारी तथा दूसरे शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी। भारत एक कृषि प्रधान देश है।

और यहां के लगभग 70% जनसंख्या गांव में निवास करती है।

इसका मुख्य व्यवसाय कृषि है। कृषि में मौसमी अथवा सामयिक रोजगार प्राप्त होता है,

अतः कृषि व्यवसाय में संलग्न ‌ जनसंख्या का अधिकांश

भाग चार से छह मास तक बेकार रहता है। इस प्रकार से भारतीय गांवों में बेरोजगारी अपने भीषण रूप में विद्यमान हैं।

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Bharat me berojgari par essay in hindi

बेरोजगारी के कारण

हमारे देश में बेरोजगारी के अनेक कारण हैं इनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
(क) जनसंख्या- ‌ बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है-

जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि। विगत कुछ दशकों में भारत में जनसंख्या का विस्फोट हुआ है।

हमारे देश की जनसंख्या में हर साल लगभग 2% की वृद्धि हो जाती है,
जब कि इस दर से बढ़ रहे व्यक्तियों के लिए हमारे देश में रोजगार की व्यवस्था नहीं है।

(ख)‌ शिक्षा -प्रणाली – भारतीय शिक्षा सैद्धांतिक अधिक है।

इसमें पुस्तकीय ज्ञान पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है,

फलत: यहां के स्कूल कॉलेजों से निकलने वाले छात्र निजी उद्योग धंधे स्थापित करने योग्य बन पाते।

(ग) कुटीर उद्योगों की उपेक्षा – ब्रिटिश सरकार की कुटीर उद्योग

विरोधी नीति के कारण देश में कुटीर उद्योगों का पतन हो गया,

फलस्वरूप अनेक कारीगर बेकार हो गए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कुटीर उद्योगों के विकास की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया तथा बेरोजगारी में निरंतर वृद्धि होती गई।

(घ)औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया- पंचवर्षीय योजनाओं में देश के औद्योगिक विकास के लिए जो कदम उठाए गए उन में समुचित रूप से देश का औद्योगीकरण नहीं किया जा सका।

फलत: बेरोजगार व्यक्तियों के लिए रोजगार के साधन नहीं जुटा सके हैं।

(ड) कृषि का पिछड़ापन – भारत की लगभग दो तिहाई जनता है कृषि पर ही निर्भर है

कृषि की पिछड़ी हुई दशा में होने के कारण कृषि बेरोजगार की समस्या व्यापक हो गई है।

(च)‌ कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी हमारे देश में कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी है ‌

अतः उद्योगों के सफल संचालन के लिए ‌ विदेशों से प्रशिक्षित कर्मचारी बुलाने पड़ते हैं। इस कारण से देश के कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों के बेरोजगार हो जाने की भी समस्या हो सकती है।

इसके अतिरिक्त मानसून की अनियमितता, भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन,

मशीनीकरण के फलस्वरूप होने वाली श्रमिकों की छंटनी,

श्रम की मांग मांग एवं पूर्ति में असंतुलन, आर्थिक संसाधनों की कमी आदि से बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।

देश को बेरोजगारी से उबारने के लिए इनका समाधान करना आवश्यक है।

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समस्या का समाधान

(क) सबसे पहली आवश्यकता है कि हस्त उद्योगों को बढ़ावा देने की।

इससे स्थानीय प्रतिभा को का अवसर मिलेगा भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए लघु उद्योग धंधे ठीक है।

जिनमें अधिक से अधिक लोगों को काम मिल सके मशीनीकरण उन्हीं देशों के लिए उपयुक्त होता है जहां कम जनसंख्या के कारण हाथों से अधिक काम लेना हो।

(ख) दूसरी आवश्यकता है – मातृ भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने की।

जिससे विद्यार्थी शीघ्र ही शिक्षित होकर अपनी प्रतिभा का उपयोग कर सकें।‌

साथ ही स्कूल कॉलेजों में दी जाने वाली व्यवहारी शिक्षा के स्थान पर

उद्योग धंधों से संबंधित शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे कि पढ़ाई समाप्त करके विद्यार्थी तत्काल रोजी रोटी कमाने योग्य हो जाए।

(ग) बड़ी-बड़ी मिलें और फैक्ट्रियां, सैनिक, शास्त्रार्थ तथा ऐसी ही दूसरी बड़ी चीजें बनाने तक सीमित कर दी जाए।
अधिकांश जीवन उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन घरेलू उद्योगों से ही हो।

पश्चिमी शिक्षा

(घ) पश्चिमी शिक्षा ने शिक्षितों के हाथ के काम को नीचा समझने की जो मनोवृति पैदा कर दी , उसे श्रम के गौरव की भावना पैदा करके दूर किया जाना चाहिए।

(ड) लघु उद्योग धंधों के विकास से शिक्षकों में नौकरियों के पीछे भागने की प्रवृत्ति घटेगी,

क्योंकि नौकरियों में देश की जनता का एक बहुत सीमित भाग ही खप सकता है।

लोगों को प्रोत्साहन देकर हस्त उधोगों एवं वाणिज्य व्यवसाय की ओर उन्मुख किया जाना चाहिए।

ऐसे लघु उद्योगों में रेशम के कीड़े पालना, मधुमक्खी पालन, सूत कातना,कपड़ा बनाना,बागवानी ,साबुन बनाना,खिलौने चटाइयां, कागज तेल इत्र आदि ना जाने कितनी वस्तुओं का निर्माण संभव है।

इसके लिए प्रत्येक जिले में जो सरकारी लघु उद्योग कार्यालय हैं

वह अधिक प्रभावी ढंग से काम करें वह इच्छुक लोगों को

सही उद्योग चुनने की सलाह दें उन्हें ऋण उपलब्ध कराएं

तथा आवश्यकता अनुसार कुछ तकनीकी शिक्षा दिलवाने की

व्यवस्था करें इसके साथ ही अनेक उत्पादों की बिक्री की व्यवस्था कराएं ।

यह सर्वाधिक आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना यह सारी व्यवस्था बेकार साबित होंगी।

सरकार के लिए ऐसी व्यवस्था करना कठिन नहीं है क्योंकि वह स्थान -स्थान पर बड़ी प्रदर्शनी आयोजित करके तैयार मालविका सकती है।

जबकि व्यक्ति के लिए विशेषता नए व्यक्ति के लिए असंभव नहीं है।
(च) इसके साथ ही देश की तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर भी रोक लगाना अत्यावश्यक हो गया है।

निष्कर्ष

तात्पर्य है कि देश के स्वायत्तशासी ढांचे और लघु उद्योग धंधों के प्रोत्साहन से बेरोजगारी की समस्या का स्थायी समाधान संभव है

हमारी सरकार भी बेरोजगारी की समस्या के उन्मूलन के लिए जागरूक हैं

और उसके द्वारा इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए हैं।

परिवार नियोजन कल्याण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, एक स्थान से

दूसरे स्थान पर कच्चा माल ले जाने की सुविधा नए नए उद्योगों की स्थापना

,कृषि भूमि के चकबंदी,प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना आदि अनेकानेक

ऐसे कार्य हैं जो बेरोजगारी को दूर करने में एक सीमा तक शहर से दूर हैं

इन कार्यक्रमों को और अधिक विस्तृत प्रभाव कारी और इमानदारी से कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है।

Bharat me berojgari par essay in hindi

ConclusionBharat me berojgari par essay in hindi

In Conclusion तो साथियों आज के इस आर्टिकल में आपने जाना कि Bharat me berojgari par essay in hindi

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कि Bharat me berojgari par essay in hindi के बारे में जानना चाहते हों।

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