Bhartiya Samaj me Nari ki Sthiti par Nibandh

Last updated on February 3rd, 2024 at 11:59 pm

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Bhartiya Samaj me Nari ki Sthiti par Nibandh

भारतीय समाज और नारी

प्रस्तावना (Preface)

नारी ब्रह्मविद्या है, श्रद्धा है, आदिशक्ति है, नारी सद्गुणों की खान है

और वह सब कुछ है, जो इस प्रकट संसार में सर्वश्रेष्ठ के रूप में दिखाई पड़ता है।

नारीवाद सनातन शक्ति है

जो प्राचीन काल से उन सामाजिक दायित्वों का वहन करती आ रही है,

जिन्हें पुरुषों का कंधा संभाल नहीं पाता।

माता के रूप में नारी ममता, करुणा , वात्सल्य, सहृदयता जैसे गुणों से युक्त है।
महादेवी वर्मा के शब्दों में-” स्त्री में मां का रूप ही सत्य, वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है। “

समाज में नारी की स्थिति ( Position of Women in Society )

किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उस राष्ट्र की आधी आबादी स्त्री की भूमिका की महत्वा को इनकार नहीं किया जा सकता।

आधी आबादी किसी भी कारण से निष्क्रिय रहती है तो उस राष्ट्र की समुचित एवं उल्लेखनीय प्रगति के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती,

लेकिन भारतीय समाज में उत्तर वैदिक काल से महिलाओं की स्थिति निम्न होती गई और मध्यकाल तक आते-आते समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों के कारण ही स्त्रियों की स्थिति और भी निम्न स्तर की हो गई।

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समाज सुधार में नारी का योगदान

आधुनिकता के आगमन एवं शिक्षा के प्रचार-प्रसार ने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाना प्रारंभ किया जिसका परिणाम राष्ट्र की समुचित प्रगति के पथ पर उनका निरंतर अग्रसर होने के रूप में सामने हैं ।

आधुनिक युग में स्वाधीनता संग्राम के दौरान रानी लक्ष्मीबाई, विजया लक्ष्मी पंडित,

सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, कमला नेहरू ,मणि बेन पटेल,

अमृत कौर आदि स्त्रियों ने आगे बढ़कर के पूरी क्षमता एवं उत्साह के साथ देश सेवा के कार्यों में भाग लिया । भारत के उत्थान हेतु समर्पित विदेशी नारियों में श्रीमती एनी बेसेंट ,मैडम कामा ,सिस्टर निवेदिता इन लोगों के द्वारा भी यहां की नारियों को अत्यधिक प्रेरणा मिली।

राजनीति व्यवस्था में नारी का योगदान


स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारतीय स्त्रियों ने सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था में अपनी स्थिति को नियंत्रण सुदृढ़ किया ‘ श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित’ विश्व की पहली महिला थी जो संयुक्त राष्ट्र संघ सभा की अध्यक्ष बनी।

स्वतंत्र भारत की पहली महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू थी ।

जबकि भारत की प्रथम मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी थी।

और श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्र को दिए जाने वाले योगदान को भला कौन भूल सकता है जो लंबे समय तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं।

विभिन्न क्षेत्रों में नारी का योगदान आज के दौर में देखा जाए तो, चाहे वह चिकित्सा का क्षेत्र हो या इंजीनियरिंग का, सिविल सेवा का क्षेत्र हो या बैंक का, पुलिस हो या फौज, विज्ञान हो या व्यवसाय प्रत्येक क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर स्त्रियां सम्मान के साथ कार्यरत हैं‌।


किरण बेदी, कल्पना चावला, मीरा कुमार, सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज ,बछेंद्री पाल, संतोष यादव ,साइना नेहवाल, पी.टी . ऊषा, मल्लेश्वरी, सानिया मिर्जा ,लता मंगेशकर आदि की क्षमता एवं प्रदर्शन को भुलाया नहीं जा सकता ।

आज नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है और देश को भी आगे बढ़ा रही हैं।

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राष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान

राष्ट्र के निर्माण में स्त्रियों का सबसे बड़ा योगदान घर एवं परिवार को संभालने के रूप में हमेशा रहा है।

किसी भी समाज में श्रम विभाजन के अंतर्गत कुछ सदस्यों का घर एवं बच्चों को संभालना एक अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व है।

अधिकांश स्त्रियां इस दायित्व का निर्वाह सुचारु रुप से करती रही हैं।

घर को संभालने के लिए जिस कुशलता एवं क्षमता की आवश्यकता होती है

उसका पुरुषों के पास सामान्यता भाव होता है, इसलिए स्त्रियों का शिक्षित होना अनिवार्य है।

यदि स्त्री शिक्षित नहीं होगी तो आने वाली पीढ़ियां अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकती।

एक शिक्षित नारी पूरे परिवार को शिक्षित एवं सुदृढ़ बना सकती है।

नारी की महत्ता

हमारे यहां शास्त्रों में ‘मनु महाराज’ ने कहा है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:’ अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है।

और हम जानते हैं कि

देवता कार्य सिद्धि में सहायक होते हैं इसीलिए कहा जा सकता है कि

जिस समाज में नारी विभिन्न क्षेत्रों में संबंधित कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है वहां प्रगति की संभावनाएं अत्यधिक बढ़ जाती है।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भी कहा था _” मैं किसी समुदाय का विकास महिलाओं द्वारा की गई प्रगत से मानता हूं।”

निसंदेह हम यह कह सकते हैं कि घर गृहस्थी का कार्य हो या राष्ट्र निर्माण का

,नारी के योगदान के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता।

वह माता, बहन ,पत्नी ,पुत्री एवं विविध स्वरूपों में पुरुषों के जीवन के साथ अत्यंत आत्मिक रूप से संबंधित है।

कवि गोपाल दास ‘नीरज ‘ने मानव जीवन में नारी की महत्ता को इन शब्दों में व्यक्त किया है

” अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वपन तुम, अर्ध निराशा -आशा
अर्ध अजित- जित , अर्थ तृप्ति तुम, अर्ध अतृप्ति- पिपासा,
आधी काया आग तुम्हारी, अधिक काया पानी ,
अर्धांगिनी नारी ! तुम जीवन की आधी परिभाषा।”

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नारी समाज का अभिन्न अंग

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल

लगभग 40 करोड़ कार्यशील व्यक्ति हैं, जिनमें से 12 .5 करोड़ से अधिक महिलाएं हैं।

भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 39% कार्यशील जनसंख्या है , जिसमें लगभग एक चौथाई महिलाएं हैं।

भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि कार्य में सक्रिय भूमिका

निभाती हुई स्त्रियां प्रारंभ से अर्थव्यवस्था का आधार रही हैं,

लेकिन पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री के आर्थिक गतिविधियों को हमेशा से ही उचित रूप से मूल्यांकन नहीं किया गया।

महिलाओं के मामलों में संवैधानिक गारंटी और वास्तविकता के बीच विरोधाभास है।

यद्यपि महिलाओं ने अनेक क्षेत्रों में प्रगति की है ,

लेकिन फिर भी अभी उन्हें पुरुषों के बराबर दर्जा नहीं मिल सका है।

लिंग अनुपात को संतुलित किया जाना

और सभी आयु समूहों में महिलाओं की जीवनशैली में सुधार किया जाना अति आवश्यक है।

आज भी अधिकांश नारियां आर्थिक दृष्टि से पुरुषों पर आश्रित बनी हुई है।

सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक दृष्टि से भी उसकी स्थिति पुरुषों के समान नहीं है।

Conclusion (उपसंहार)

भारत में अदालती कानून की अपेक्षा प्रथागत कानूनों का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है।

अतः सिर्फ कानूनी प्रावधान महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे

बल्कि लोगों की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।

आवश्यकता इस बात की भी है कि भारतीय समाज में महिलाओं को उनका उपयुक्त स्थान दिलाया जाए

तथा उनकी कार्य शक्ति एवं ऊर्जा का भरपूर उपयोग हो

और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके साथ समानता का व्यवहार हो जिससे उन्हें अपने विकास का पूरा अवसर प्राप्त हो सके।

क्योंकि ऐसी स्थिति में ही भारतीय समाज में स्त्रियों का योगदान अधिकतम हो सकता है।

Finally मुझे उम्मीद है कि

अब आप समझ गए होंगे कि Bhartiya Samaj me Nari ki Sthiti par Nibandhइस टॉपिक पर निबंध कैसे लिखा जाता है

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