Swadesh prem par nibandh – स्वदेश प्रेम पर निबंध

Last updated on November 4th, 2023 at 04:11 pm

दोस्तों अगर आप Swadesh prem par nibandh पढ़ना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को लास्ट तक जरूर पढ़िए।

आइए आपको बताते हैं Swadesh prem par nibandh के बारे में

रुपरेखा 1. प्रस्तावना 2. देश प्रेम की स्वाभाविकता 3. देश प्रेम का अर्थ 4. देश प्रेम का क्षेत्र 5. देश प्रेम के प्रति कर्तव्य 6. भारतीयों का प्रेम 7. उपसंहार.

स्वदेश प्रेम पर निबंध

प्रस्तावना

ईश्वर द्वारा बनाई गई सर्वाधिक अद्भुत रचना है. जननी अर्थात माता जो नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतीक है। प्रेम का पर्याय है – स्नेह की मधुर हवा, सुरक्षा का अटूट कवच।

जो संस्कारों के पौधों को माता के जल से सीखने वाली चतुर उद्यान रक्षिका है। जिसका नाम प्रत्येक सिर को नमन के लिए झुक जाने को प्रेरित करता है। यही बात जन्मभूमि के विषय में भी सत्य है।

इन दोनों का दुलार जिसने पा लिया उसे तो स्वर्ग का पूरा – पूरा अनुभव पृथ्वी पर ही हो गया। इसे जननी (माता)
जन्म – भूमि की महिमा को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया है।

देश प्रेम की स्वाभाविकता

प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अत्यधिक प्रेम होता है। अपना देश चाहें बर्फ से ढका हो, अथवा चाहे गर्म रेत से भरा हुआ हो। अपना देश चाहे कैसा भी हो? वह सबके लिए प्रिय होता है. और इस संबंध में रामनरेश त्रिपाठी की कुछ पंक्तियां निम्नलिखित हैं –

विषुवत रेखा का वासी जो, जीता है नित हांफ – हांफ कर |
रखता है अनुराग अलौकिक, वह भी अपनी मातृभूमि पर ||
ध्रुववासी जो हिम में तम में, जी लेता है कांप कांप कर |
वह भी अपनी मातृभूमि पर, कर देता है प्राण निछावर ||

प्रातः होते हैं पक्षी भोजन पानी के लिए कलरव करते हुए दूर स्थानों पर चले जाते हैं, किंतु सायकाल होते ही विशेष उमंग के साथ और उत्साह के साथ अपने – अपने घोंसलों की ओर लौटने लगते हैं। जब पशु पक्षियों को अपने घर से, मातृभूमि से इतना प्रेम हो सकता है। तो भला इंसान को अपनी जन्मभूमि से, अपने देश से प्रेम क्यों नहीं होगा?

सत्य ही कहा गया है – जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

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देश प्रेम का अर्थ

देश प्रेम से तात्पर्य – देश में रहने वाले जड़ चेतन सभी से प्रेम, सभी झोपड़ियों, महलों तथा संस्थाओं से प्रेम, वेश- भूषा, धर्मों, मतों नदी वन सभी से प्रेम और अपनत्व रखना उन सब के प्रति गर्व की अनुभूति करना सच्चे देश प्रेमी के लिए देश का कण-कण पावन और पूज्य है.


सच्चा प्रेम वही है जिसकी तृप्ति आत्म बलि पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है, करो प्रेम पर प्राण निछावर ||
देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अमल असीम त्याग से विलसित |
आत्मा के विकास से जिसमें मानवता होती है विकसित ||

सच्चा देश प्रेमी वही होता है जो देश के लिए नि:स्वार्थ भावना से बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है। सच्चा देश भक्त सत्यवादी, उत्साही, महत्वाकांक्षी और कर्तव्य की भावना से प्रेरित होता है.

Swadesh prem par nibandh

देश प्रेम का क्षेत्र

देश प्रेम का क्षेत्र अत्यंत ही व्यापक है जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति देशभक्ति की भावना प्रदर्शित कर सकता है।

सैनिक युद्ध भूमि में प्राणों की बाजी लगाकर, राजनेता के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर, समाज सुधारक समाज का नवनिर्माण करके, धार्मिक नेता मानव धर्म का उच्च आदर्श प्रस्तुत करके, साहित्यकार राष्ट्रीय चेतना और जन जागरण का स्वर भर करके देशभक्ति की भावना प्रदर्शित कर सकता है।

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देश के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?

जिस देश में हमने जन्म लिया और जिसका अनाज खाकर, अमृत के समान जल पीकर, सुखद वायु का सेवन करके हम बलवान हुए हैं। जिसकी मिट्टी में खेल – कूद कर हमने पुष्ट शरीर प्राप्त किया है। उस देश के प्रति हमारे अनेक कर्तव्य है।

हमें अपने देश के लिए कर्तव्य पालन और त्याग की भावना से श्रद्धा, सेवा एवं प्रेम रखना चाहिए। हमें अपने देश के सम्मान और गौरव के लिए प्राणों की बाजी लगा देनी चाहिए। यह सब करने के बावजूद भी हम अपनी जन्मभूमि या अपने देश के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते।

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भारतीयों का देश प्रेम

भारत मां ने ऐसे असंख्य सपूतों को जन्म दिया है. जिन्होंने असीम त्याग भावना से प्रेरित

होकर हंसते-हंसते मातृभूमि पर प्राण न्योछावर कर दिए।

वन वन भटकने वाले महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाना स्वीकार किया

परंतु मातृभूमि के लिए शत्रुओं के सामने कभी मस्तक नहीं झुकाया।

और शिवाजी ने देश और मातृभूमि की सुरक्षा के लिए गुफाओं में रहकर शत्रु से टक्कर ली।

रानी लक्ष्मीबाई ने महलों के सुखों को त्याग कर शत्रुओं से लोहा लेते ही वीरगति को प्राप्त हो गई।

भगत सिंह, चंद्रशेखर, आजाद, सुखदेव, राजगुरु अशफाक उल्ला और न जाने कितने देश भक्तों ने विदेशियों की यातनाएं सहते हुए मुख से वंदेमातरम कहते हुए हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया।

उपसंहार – Swadesh prem par nibandh

खेद का विषय है कि आज हमारे नागरिकों में देश प्रेम की भावना अत्यंत दुर्लभ होती जा रही है।

नई पीढ़ी का विदेशों की वस्तुओं और संस्कृतियों के प्रति अंधाधुंध मोह,

अपने देश के बजाय विदेश में जाकर सेवाएं अर्पित करने के सजीले सपने वास्तव में चिंताजनक है।

हमारी पुस्तके भले ही राष्ट्रप्रेम की गाथाएं पाठ्य सामग्री में संजोए रहें

परंतु वास्तव में नागरिकों के हृदय में गहरा राष्ट्रप्रेम ढूंढने पर भी नहीं मिलता.

प्रत्येक देशवासियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि विदेश रूपी बगिया में राज्य रूपी अनेक यारियां हैं।

और सभी कार्यों की उन्नति देश रूपी उपवन के सर्वांगीण उन्नति है।

जिस प्रकार एक माली अपने उपवन की सभी क्यारियों की देखभाल समान भाव से करता है

ठीक उसी प्रकार हमें भी देश का सर्वांगीण विकास करना चाहिए

स्वदेश प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण हैं

और इसे संकुचित रूप में न ग्रहण कर इसे व्यापक रूप से समझना चाहिए।

संकुचित रूप में ग्रहण करने से विश्व शांति को खतरा हो सकता है।

हमें स्वदेश प्रेम की भावना के साथ साथ समस्त मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना चाहिए।

तो साथियों यह थी Swadesh prem par nibandh से संबंधित जानकारी

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