मेरा प्रिय खेल हॉकी – Mera priya khel Essay in hindi

Last updated on November 5th, 2023 at 04:47 pm

साथियों अगर आप Mera priya khel essay in hindi पर निबंध पढ़ना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को लास्ट तक जरूर पढ़िए जिससे आपको सब कुछ अच्छे से समझ आ जाए।

मेरा प्रिय खेल हॉकी – Mera priya khel essay in hindi

प्रस्तावना

संसार का कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे कोई – न कोई खेल प्रिय न हो। सभी को कोई न कोई खेल अपनी रूचि के अनुरूप अवश्य ही प्रिय होता है। किसी को शारीरिक, तो किसी को मानसिक विकास को प्रबल करने वाले खेल प्रिय होते हैं।

लेकिन मेरा प्रिय खेल हॉकी Mera Priya Khel Hockey है। क्योंकि हॉकी खेल के कारण ही हमारा भारत देश प्रसिद्ध है. यह हमारा राष्ट्रीय खेल भी है।

आइए जान लेते हैं मेरा प्रिय खेल हॉकी Mera Priya Khel Hockey का क्या इतिहास है।

हॉकी खेल का इतिहास

भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी विश्व के लोकप्रिय खेलों में से एक है इसकी शुरुआत कब हुई ? यह तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि ऐतिहासिक साक्ष्यों से सैकड़ों वर्ष पहले भी इस प्रकार का खेल होने के प्रमाण मिलते हैं। आधुनिक हॉकी खेलों का जन्मदाता इंग्लैंड को माना जाता है।

भारत में अभी आधुनिक हॉकी की शुरुआत का श्रेय अंग्रेजों को ही जाता है।

हॉकी के अंतरराष्ट्रीय मैचों की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई थी।

इसके बाद बीसवीं शताब्दी में वर्ष 1924 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना पेरिस में हुई।

विश्व के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन ‘ओलंपिक ‘के साथ ‘राष्ट्रमंडल खेल’ एवं “एशियाई खेलों” में भी हॉकी को शामिल किया जाता है।

वर्ष 1971 में पुरुषों के हॉकी विश्व कप की एवं वर्ष 1971 में महिलाओं के हॉकी विश्व कप की शुरुआत हुई।

हॉकी खेल का स्वरूप

हॉकी मैदान में खेला जाने वाला खेल हैं। बर्फीले क्षेत्रों में बर्फ के मैदान पर खेली जाने वाली आइस मेरा प्रिय खेल हॉकी Mera Priya Khel Hockey भारत ने लोकप्रियता अर्जित नहीं कर सकी है।

दो दलों के बीच खेले जाने वाले खेल हॉकी में दोनों दलों के 11_11 खिलाड़ी भाग लेते है।

आजकल हॉकी के मैदान में कृतिम घास का प्रयोग भी किया जाने लगा है।

मेरा प्रिय खेल हॉकी Mera Priya Khel Hockey में दोनों टीमें स्टिक की सहायता से

रबड़ या कठोर प्लास्टिक की गेंद को विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने का प्रयास करती है। यदि विरोधी टीम के नेट में गेंद चली जाती है, तो उसे एक गोल कहा जाता है। जो टीम विपक्षी टीम के विरुद्ध अधिक गोल बनाती है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है।

भारतीय हॉकी की प्रतिष्ठा

राष्ट्रीय खेल की बात आते ही तत्काल मेजर ध्यान चंद्र का स्मरण हो जाता है,

जिन्होंने अपने करिश्माई प्रदर्शन से पूरी दुनिया को

अचंभित कर खेलों के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया। हॉकी के मैदान पर जब वह खेल में उतरते थे,

तो विरोधी टीम को हराने में देर नहीं लगती थी।

उनके बारे में यह कहा जाता है कि वह किसी भी कोण से गोल खेल सकते थे।

यही कारण है कि सेंटर फारवर्ड के रूप में उनकी जबरजस्त फुर्ती को देखते हुए उनके जीवन काल में ही उनकी हॉकी का जादूगर कहां जाने लगा था। उन्होंने इस खेल को नवीन ऊंचाइयां दीं।

भारतीय हॉकी का स्वर्णिम इतिहास

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था।

वे बचपन में अपने मित्रों के साथ पीर की डाली की स्टिक और कपड़ों की गेंद बनाकर हॉकी खेला करते थे।

23 वर्ष की उम्र में ध्यान चंद्र वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार भारतीय हॉकी टीम के सदस्य चुने गए थे।

उनकी प्रदर्शन के दम पर भारतीय हॉकी टीम ने तीन बार वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक, वर्ड्स 1932 के लास एजिल्स ओलंपिक एवं वर्ष 1936 के बर्लिन

ओलंपिक में स्वर्ण पादप प्राप्त कर राष्ट्र को गौरवान्वित किया था। यह भारतीय हॉकी को उनका अविस्मरणीय योगदान है।

ध्यान चंद्र के उपलब्धियों को देखते हुए विभिन्न पुरस्कारों एवं सामानों से सम्मानित किया गया।

वर्ष 1956 में 51 वर्ष की आयु में जब वे भारतीय सेना के मेयर पद से सेवानिवृत्त हुए,

तो उसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें “पदम भूषण” से अलंकृत किया।

उनके जन्मदिन 29 अगस्त को “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की गई।

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भारतीय हॉकी का विकास एवं शानदार प्रदर्शन

देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी का विकास करने के लिए वर्ष 1925 में ग्वालियर में

अखिल भारतीय हॉकी संघ की स्थापना की गई थी। यदि ओलंपिक खेलों में भारतीय टीमों के प्रदर्शन की बात की जाए, तो वर्ष 2014 तक देश को कुल 24 पदक प्राप्त हुए हैं।

जिनमें से 11 पदक अकेले भारतीय हॉकी टीम ने ही हासिल किए हैं।

हॉकी में प्राप्त 11 पदकों में से 8 स्वर्ण ,1 रजत एवं 2 कांस्य पदक शामिल है।

वर्ष 1928 से लेकर वर्ष 1956 तक लगातार 6 बार भारत ने ओलंपिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक जीतने में सफलता पाई।

इसके अतिरिक्त, भारत में वर्ष 1964 एवं 1980 में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

हॉकी के विश्व कप में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन ओलंपिक जैसा नहीं रहा है।

वर्ष 1975 में हुए तीसरे हॉकी विश्व कप में भारतीय खिलाड़ियों ने शीर्ष स्थान प्राप्त कर इतिहास रच दिया।

उपसंहार मेरा प्रिय खेल हॉकी (Mera Priya Khel Hockey)

मेरा प्रिय खेल हॉकी Mera Priya Khel Hockey राष्ट्रमंडल खेल 2002

और एशियन गेम्स 1982 में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का मान बढ़ाया है।

इसके अलावा एशियन गेम्स 1998 और राष्ट्रमंडल खेल 2006 में यह टीम उपविजेता घोषित हुई।

इस प्रकार भारतीय पुरुष हॉकी टीम के साथ साथ

भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

अपनी विशेष पहचान कायम करने में सफलता पाई है।

आने वाले वर्षों में यह दोनों टीमें नए-नए कीर्तिमान गढ़ कर भारत को गौरवान्वित करने में पूर्ण सहयोग देगी।

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